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उत्तर प्रदेश: शंकरगढ़ में ताले जड़ित शौचालय सरकार की योजना कागजों में सीमित, जनता परेशान

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उत्तर प्रदेश  Published by: Indresh Kumar Pandey , Date: 03/09/2025 06:20:55 pm Share:
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  • 03/09/2025 06:20:55 pm
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संक्षेप

उत्तर प्रदेश: प्रयागराज शंकरगढ़ ब्लॉक में नगर पंचायत द्वारा बनाए गए सार्वजनिक शौचालय जनता की सुविधा के बजाय अब ताले में बंद शोपीस बनकर रह गए हैं। वर्षों पहले लाखों रुपये की लागत से बनाए गए इन शौचालयों का उद्घाटन तो हुआ, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि उसके बाद ताले कभी खोले ही नहीं गए। ताले पर जंग लग चुका है, और शौचालय के उपयोग का कोई नामोनिशान नहीं है। 

विस्तार

उत्तर प्रदेश: प्रयागराज शंकरगढ़ ब्लॉक में नगर पंचायत द्वारा बनाए गए सार्वजनिक शौचालय जनता की सुविधा के बजाय अब ताले में बंद शोपीस बनकर रह गए हैं। वर्षों पहले लाखों रुपये की लागत से बनाए गए इन शौचालयों का उद्घाटन तो हुआ, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि उसके बाद ताले कभी खोले ही नहीं गए। ताले पर जंग लग चुका है, और शौचालय के उपयोग का कोई नामोनिशान नहीं है। 

लाखों का बजट, लेकिन जनता को सुविधा नहीं स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाए गए इन शौचालयों का उद्देश्य खुले में शौच से मुक्ति दिलाना और स्वच्छता को बढ़ावा देना था।परंतु, जमीनी हकीकत यह है कि इन शौचालयों पर ताले लटके हुए हैं और स्थानीय लोग आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं।स्थानीय जनता की नाराजगी खुले में शौच की मजबूरी शौचालय का उपयोग न होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं।संक्रमण का खतरा खुले में शौच के कारण संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

सरकारी लापरवाही का आरोप स्थानीय निवासियों का कहना है कि शौचालय के उद्घाटन के बाद से कोई देखरेख नहीं हुई। प्रशासन की उपेक्षा पर सवाल शौचालय के बंद होने से यह सवाल उठता है कि सरकारी धन का उपयोग सही तरीके से हुआ या नहीं। ताले में जंग लगना इस बात का संकेत है कि जिम्मेदार अधिकारियों ने इनका संचालन सुनिश्चित नहीं किया।जनता की मांग शौचालयों को तत्काल चालू किया जाए।साफ-सफाई और देखरेख की व्यवस्था हो।

जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।शंकरगढ़ के शौचालयों पर लटके ताले सरकारी योजनाओं की विफलता और प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक बन गए हैं। यह स्थिति न केवल जनता के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि सरकारी धन की बर्बादी को भी उजागर करती है। अब देखना यह है कि प्रशासन कब इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाता है।